बंद होते स्कूल, घटती संख्या, बढ़ता भ्रम – कैसे बनेगा भारत विश्वगुरु?


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पिछले एक दशक (2014-2025) में भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में बड़े पैमाने पर संरचनात्मक बदलाव देखे गए हैं, जो सरकारी स्कूलों की संख्या में चिंताजनक कमी, निजी स्कूलों की वृद्धि और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में गहराते संकट से चिह्नित हैं। शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 और सर्व शिक्षा अभियान (SSA) जैसे प्रयासों का लक्ष्य सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करना था, लेकिन हज़ारों सरकारी स्कूलों का बंद होना या विलय इस प्रणाली की नींव को कमज़ोर कर रहा है।

UDISE+ डेटा, शिक्षा मंत्रालय रिपोर्ट और लोकसभा बयानों पर आधारित

सरकारी स्कूलों की घटती संख्या: एक चिंताजनक रुझान

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) डेटा के अनुसार, 2014-15 से 2023-24 के बीच भारत में 89,441 सरकारी स्कूल बंद हुए, जो 11,07,101 से घटकर 10,17,660 हो गए, यानी 8% की गिरावट। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह कमी सबसे अधिक है, जो कुल गिरावट का 60.9% (54,536 स्कूल) हिस्सा हैं।

राज्य/संघ-शासित प्रदेश 2014-15 2023-24 कमी प्रतिशत कमी
मध्य प्रदेश 1,21,849 92,439 29,410 24.1%
उत्तर प्रदेश 1,62,228 1,37,102 25,126 15.5%
जम्मू-कश्मीर 23,874 18,758 5,116 21.4%
ओडिशा 58,697 48,671 10,026 17.1%
अरुणाचल प्रदेश 3,408 2,847 561 16.4%
झारखंड 41,322 35,795 5,527 13.4%
नागालैंड 2,279 1,952 327 14.4%
गोवा 906 789 117 12.9%
उत्तराखंड 17,753 16,201 1,552 8.7%
स्रोत: केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी का लोकसभा बयान

उत्तर प्रदेश में 25,126 स्कूलों के बंद होने से अनुमानित 25-30 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं, जिनमें 1.5-3 लाख बच्चे ड्रॉपआउट का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा, जुलाई 2025 तक 5,000 और स्कूलों का विलय पूरा हो चुका है, और 27,000 और स्कूलों के बंद होने की आशंका ने इस संकट को और गहरा कर दिया है।

अपवाद के रूप में कुछ राज्य

जबकि अधिकांश राज्यों में स्कूलों की संख्या घटी, कुछ राज्यों में वृद्धि दर्ज की गई:

  • बिहार: 74,291 (2014-15) से 78,120 (2023-24), +3,829 स्कूल (+5.1%)
  • मणिपुर: 562 स्कूलों की वृद्धि
  • मेघालय: 7,763 से 7,779 स्कूल (+16)

ये अपवाद सकारात्मक हस्तक्षेप की संभावना को दर्शाते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर चिंताजनक रुझान को कम नहीं करते।

निजी स्कूलों की वृद्धि और शिक्षा का निजीकरण

जबकि सरकारी स्कूलों की संख्या घटी, निजी स्कूलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 2014-15 से 2023-24 के बीच निजी स्कूलों की संख्या 2,88,164 से बढ़कर 3,31,108 हो गई, यानी 42,944 स्कूलों की वृद्धि (14.9%)।

प्रमुख राज्यों में निजी स्कूलों की वृद्धि

  • उत्तर प्रदेश: 77,330 से 96,635 (+19,305, 24.96%)
  • बिहार: 3,284 से 9,167 (+5,883, 179.14%)
  • ओडिशा: 3,350 से 6,042 (+2,692, 80.36%)

नोट: उत्तर प्रदेश अकेले कुल निजी स्कूल वृद्धि का 44.9% योगदान देता है।

यह निजीकरण का रुझान गरीब और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए चुनौती है, क्योंकि निजी स्कूलों की उच्च फीस और ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित पहुंच शिक्षा को और दुर्गम बनाती है।

स्कूल बंदी और विलय के कारण

शिक्षा मंत्रालय, लोकसभा में मंत्री जयंत चौधरी के उत्तर, और X पर पोस्ट के अनुसार निम्नलिखित कारण सामने आए:

  • कम नामांकन: 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों को "अव्यवहारिक" माना जाता है
  • स्कूल युक्तिकरण: नीति आयोग और राज्य सरकारें संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए छोटे स्कूलों को बंद या मर्ज करने की सिफारिश करती हैं
  • निजीकरण की मंशा: X पर दावे के अनुसार, सरकारी स्कूलों को कमज़ोर कर निजी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है
  • राज्य स्वायत्तता: शिक्षा समवर्ती सूची में होने के कारण, स्कूल प्रबंधन राज्य सरकारों के अधीन है

जुलाई 2025 में, लखनऊ हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की 5,000 से अधिक स्कूलों के विलय की नीति को वैध ठहराया, यह कहते हुए कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए संसाधनों का केंद्रीकरण आवश्यक है। हालांकि, इस फैसले ने ग्रामीण स्कूलों के अस्तित्व पर सवाल उठाए हैं।

समाज पर प्रभाव

स्कूल बंदी और विलय के दूरगामी परिणाम हैं:

निजीकरण और असमानता

निजी स्कूलों की वृद्धि से गरीब समुदायों के लिए शिक्षा दुर्लभ हो रही है

RTE का उल्लंघन

पड़ोस में स्कूल की गारंटी के बावजूद दूरी बढ़ने से बालिकाओं और वंचित वर्गों पर असर

शिक्षक-छात्र अनुपात

विलय से शिक्षकों पर बोझ बढ़ा, शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित

ड्रॉपआउट का खतरा

उत्तर प्रदेश में 3.5 लाख छात्र पहले ही प्रभावित, 5-6 लाख और प्रभावित हो सकते हैं

शिक्षा पर खर्च: एक मूल कारण

भारत का शिक्षा पर खर्च अपर्याप्त है। नवीनतम आंकड़ों (2023-24) के अनुसार, भारत अपनी GDP का 3%-4.6% शिक्षा पर खर्च करता है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के 6% लक्ष्य से कम है। तुलना में:

  • OECD देश: औसतन 5%-6% GDP, जैसे अमेरिका (5.8%-6.2%) और फिनलैंड
  • क्यूबा: GDP का 12.8% तक खर्च करता है (हालांकि OECD सदस्य नहीं)

यह धन की कमी बुनियादी ढांचे, शिक्षक भर्ती और ग्रामीण स्कूलों के समर्थन को सीमित करती है।

आशा की किरण: तेलंगाना का एक-छात्र स्कूल

इस संकट के बीच, तेलंगाना के खम्मम जिले के नारापानेनिपल्ली गांव का एक सरकारी स्कूल RTE की भावना को साकार करता है। इस स्कूल में केवल एक छात्रा, कीर्तना, पढ़ती है, फिर भी सरकार एक शिक्षक, रसोइया और सफाईकर्मी प्रदान करती है, और लाखों रुपये खर्च करती है। यह शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

समाधान और सुझाव

NEP के सार्वभौमिक और समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

सार्वजनिक शिक्षा को प्राथमिकता

प्राथमिक शिक्षा को सार्वजनिक ज़िम्मेदारी मानकर संसाधनों का पुनर्निर्माण करें

ग्रामीण स्कूलों का सशक्तिकरण

छोटे स्कूलों को बंद करने के बजाय टेक्नोलॉजी और मल्टीग्रेड शिक्षकों से सशक्त करें

परिवहन और छात्रवृत्ति

बालिकाओं और वंचित वर्गों के लिए मुफ्त परिवहन और छात्रवृत्ति योजनाएँ लागू करें

RTE की निगरानी

स्कूल बंदी की समीक्षा के लिए केंद्रीय निगरानी व्यवस्था स्थापित करें

पारदर्शी डेटा

UDISE+ डेटा को जिलावार सार्वजनिक करें

बजट वृद्धि

NEP के 6% GDP लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठाएँ

निष्कर्ष

2014-2024 के बीच 89,441 सरकारी स्कूलों का बंद होना और 42,944 निजी स्कूलों की वृद्धि भारत की शिक्षा प्रणाली की गंभीर स्थिति को दर्शाती है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लाखों छात्र प्रभावित हुए हैं। बिहार और तेलंगाना के एक-छात्र स्कूल जैसे अपवाद आशा की किरण हैं, लेकिन अपर्याप्त धन और निजीकरण जैसे मुद्दे सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य को खतरे में डाल रहे हैं। तत्काल नीतिगत और वित्तीय हस्तक्षेप आवश्यक हैं।

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Sonali Singh  Mishra

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